क्या आपको पता है कि पिज्जा में गोवंश मांस (बीफ) की परत होती है। पैकेट पर इस बारे में साफ लिखा भी है। हालांकि जिस पैकेट में यह खाद्य सामग्री है, उस पर उत्पाद का वेज या नानवेज होने की पुष्टि करने वाला लोगो नहीं है। केंद्र के कामर्स एंड इंडस्ट्री मंत्रालय के अधीन डायरेक्टर जनरल फॉरेन ट्रेड से सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी में यह खुलासा हुआ है। जिले के प्रहलाद नगर निवासी सागर ने यह सूचना मांगी थी। डायरेक्टर जनरल की ओर से सभी राज्यों के मुख्य सचिव को भेजे गए पत्र में ऐसे पिज्जा की बिक्री पर प्रतिबंध लगाते हुए कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है। इसमें पिज्जा निर्माता ही नहीं बेचने वाले के विरुद्ध भी कार्रवाई करने को कहा गया हैं। डीएम सुभाष चंद शर्मा के आदेश पर एडीएम सिटी महावीर प्रसाद आर्य ने इसके लिए छापामार दल का गठन किया है, जिसमें एसपी सिटी, नगर आयुक्त व नगर स्वास्थ्य अधिकारी को तत्काल सघन अभियान चलाकर यह पिज्जा बेचने वालों के विरुद्ध कार्रवाई करने के आदेश दिए गए हैं। वहीं कमिश्नर भुवनेश कुमार का कहना है कि ऐसे पिज्जा की बिक्री के खिलाफ न केवल मेरठ में बल्कि पूरे मंडल में अभियान चलाया जाएगा। संबंधित डीएम को इस बाबत आदेश जारी किये गये हैं|
संवादसेतु - गोमाता
Monday, April 4, 2011
Friday, March 25, 2011
बीमार गाय-भैंसों को चारा तो दूर पानी भी नहीं
हिसार दूध के रूप में पशु के खून का कतरा-कतरा निचोड़ कर मालामाल होने वाला राजकीय पशुधन फार्म दो आज उन्हीं पशुओं को तिल-तिल मारने पर जुटा है। इन पशुओं का कसूर बस इतना है कि यह वक्त की मार से नकारा हो चुके हैं या बीमारी के कारण फार्म को कमाई नहीं दे सकते। चलते-फिरते कंकाल बन चुके यह पशु मिनट दर मिनट मौत के करीब जा रहे हैं और कुछ दिनों बाद यह पशु भी फार्म के एक कोने में पड़े हड्डियों के ढेर में शामिल हो जाएंगे। राजकीय पशुधन फार्म सेक्टर-दो के गौ सदन का निर्माण ही केवल इसलिए किया गया था यहां बीमार व बांझ पशुओं रखा जा सके। गौ सदन के उद्देश्य के विपरीत इसे पशुओं के आरामगाह की जगह बूचड़खाने में तबदील कर दिया गया है। रिकार्ड के अनुसार यहां पर लगभग एक माह पहले बु्रसोलोसिस बीमारी से पीडि़त 60 भैंसों व कटड़ों को लाया गया था लेकिन इनकी संख्या लगभग एक सौ के करीब है, दूसरी बीमारियों से ग्रस्त लगभग 60 गाय व सांड पहले से ही यहां थे। नियमानुसार बु्रसोलोसिस बीमारी से पीडि़त पशु के साथ दूसरे किसी जानवर को रखा नहीं जा सकता, लेकिन गाय व सांडों को इनके बीच रखा गया है। इससे यह बीमारी गाय व सांडों में भी फैलने का खतरा बढ़ गया है।
नहीं मिल रहा चारा-पानी : फार्म के गौ सदन में बीमार और नाकारा घोषित पशु दयनीय स्थिति में थे। पशु चलते-फिरते कंकाल में बदल गए हैं। चारागाह में पड़े गोबर और सूखी लकडिय़ां खुद-ब-खुद पशुओं को मिलने वाले चारे की कहानी बयां कर रहे थे। सदन की चार दीवारी के अंदर कहीं भी पानी का इंतजाम नहीं था। इस गौ सदन में कराह रहे इन बेजुबानों की आवाज सुनने वाला वहां कोई नहीं था।
ब्रुसोलोसिस का कोई इलाज नहीं : डॉ. पूर्णचंद लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विवि के पशु चिकित्सक एवं बु्रसोलोसिस बीमारी विशेषज्ञ डॉ. पूर्णचंद का कहना है कि यह पशुओं की ऐसी बीमारी है जिसका कोई उपचार नहीं है। बीमारी से पीडि़त पशु का दूध किसी काम का नहीं होता और उससे पैदा होने वाले बच्चे को भी यह बीमारी लग जाती है। इसके अलावा अगर किसी स्वस्थ जानवर को इस बीमारी से पीडि़त पशु के साथ रखा जाता है तो उसे भी यह बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है।
दबाने की बजाए खुले में फेंकी जाती है हड्डियां : नियमानुसार बु्रसोलोसिस से पीडि़त पशुओं को मरने के बाद छह फुट गहरे गढ्डे में दबाया जाना चाहिए। दबाने से पहले से शव पर फिनाइल, चूना व नमक डाला जाता है। परंतु सदन में मरने वाले इन पशुओं को कुछ ही दूरी पर फेंक दिया जाता है जहां इनकी खाल तो उतार ली जाती है लेकिन हड्डियों का ढेर वहीं छोड़ दिया जाता है। इससे सेक्टर में आने वाले कुत्ते मृत पशुओं का मांस खाकर बु्रसोलोसिस बीमारी को पड़ोस के गांवों तक ले जाते हैं।
नेचुरल डेथ के लिए छोड़े हैं पशु : पशुधन फार्म के अधीक्षक डॉ. ईश्वर सिंह जाले का कहना है कि इन पशुओं में लगी बीमारियों का कोई इलाज नहीं है। इसलिए नेचुरल डेथ के लिए इन्हें गौ सदन में रखा गया है। नियमानुसार इन पशुओं को चारा दिया जाता है।
Monday, February 7, 2011
घरों में गाय पालेंगे तो बचेगा गोवंश
भारतीय गोवंश रक्षण संवर्धन परिषद, राजस्थान न्यास की ओर से रविवार को भारत गोशाला एवं गोरक्षा प्रतिनिधि सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें आम लोगों से घरों में गाय पालने का आह्वान किया गया। साथ कहा गया कि सिर्फ गोशाला की बात कहने से गाय का संरक्षण नहीं हो पाएगा। बैठक की अध्यक्षता विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और गोरक्षा प्रभारी हुकमचंद सांवला ने की। इस दौरान मुख्यमंत्री को दिए जाने वाले ज्ञापन पर भी चर्चा की गई।
बैठक में परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष जय बहादुरसिंह शेखावत ने कहा कि जयपुर में जिस तरह गायों को निर्ममतापूर्वक शहर से बाहर निकाला जा रहा है, वह निंदनीय है। लोगों ने गोवंश को घसीट-घसीट कर पिंजरों में डाला। इसकी जितनी निंदा की जाए, कम है। कार्यक्रम में परिषद के केंद्रीय सचिव हरिहर पारीक ने कहा कि गाय रक्षण के लिए हर व्यक्ति, खासकर किसानों को गाय पालनी चाहिए। उन्होंने विदेशी नस्ल की गायों के स्थान पर देसी गायों को पालने और उनके संरक्षण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि गाय पालने के साथ इसके आर्थिक पक्ष को भी ध्यान में रखना होगा। इसके लिए लाभ की स्थिति में चल रहे दुर्गापुरा गोसेवा संघ का भी उल्लेख किया। इस बैठक को हुकमचंद सावंला, हरिशंकर और अन्य वक्ताओं ने भी संबोधित किया।
मुख्यमंत्री को दिए जाने वाले ज्ञापन में देसी नस्ल की गायों के संरक्षण के लिए अनुसंंधान केंद्र शुरू जाने की मांग है। साथ ही पूर्वी जिलों भरतपुर, करौली, अलवर और धौलपुर से हो रही गो निकासी को रोकने की मांग की गई है। ज्ञापन में गोचर भूमि पर हो रहे अतिक्रमण को रोकने के लिए भी सरकार से गुहार की गई..
बैठक में परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष जय बहादुरसिंह शेखावत ने कहा कि जयपुर में जिस तरह गायों को निर्ममतापूर्वक शहर से बाहर निकाला जा रहा है, वह निंदनीय है। लोगों ने गोवंश को घसीट-घसीट कर पिंजरों में डाला। इसकी जितनी निंदा की जाए, कम है। कार्यक्रम में परिषद के केंद्रीय सचिव हरिहर पारीक ने कहा कि गाय रक्षण के लिए हर व्यक्ति, खासकर किसानों को गाय पालनी चाहिए। उन्होंने विदेशी नस्ल की गायों के स्थान पर देसी गायों को पालने और उनके संरक्षण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि गाय पालने के साथ इसके आर्थिक पक्ष को भी ध्यान में रखना होगा। इसके लिए लाभ की स्थिति में चल रहे दुर्गापुरा गोसेवा संघ का भी उल्लेख किया। इस बैठक को हुकमचंद सावंला, हरिशंकर और अन्य वक्ताओं ने भी संबोधित किया।
मुख्यमंत्री को दिए जाने वाले ज्ञापन में देसी नस्ल की गायों के संरक्षण के लिए अनुसंंधान केंद्र शुरू जाने की मांग है। साथ ही पूर्वी जिलों भरतपुर, करौली, अलवर और धौलपुर से हो रही गो निकासी को रोकने की मांग की गई है। ज्ञापन में गोचर भूमि पर हो रहे अतिक्रमण को रोकने के लिए भी सरकार से गुहार की गई..
Sunday, January 30, 2011
हजारों लावारिस गोवंश को छत देंगे बादल
पंजाब में गोवंश की बेकद्री कम हो, इसके लिए गौभक्तों को शासन प्रशासन की कृपा की दरकार है। हालांकि, गौरक्षा बोर्ड नाभा में प्रदेश की सबसे बड़ी गौशाला बनाने की योजना तो बना चुका है, लेकिन निर्माण से पहले वह जमीन को अवैध कब्जों से मुक्त कराने की जद्दोजहद में जुटा है। पंजाब में इस समय लगभग बीस हजार गायें-बछड़े लावारिस हैं, अगर यह योजना सिरे चढ़ जाती है तो इनमें से ज्यादातर गौवंश को छत नसीब हो सकती है। राज्य की प्रकाश सिंह बादल सरकार द्वारा गठित गौरक्षा बोर्ड नाभा के निकट गौ चरांद (महाराजा नाभा द्वारा गायों के लिए छोड़ी जगह) वाली दो सौ एकड़ पर प्रदेश स्तरीय गौशाला बनाने जा रहा है। बोर्ड ने सरकार से उक्त जगह हासिल करने की मंजूरी ले ली है। सरकार ने दो सौ में से करीब 40 एकड़ पर हुए कब्जे छुड़ाने के लिए डीसी को पत्र भी लिखा है। फाजिल्का के गांव बोदीवाला पीथा में प्रदेश स्तरीय गौशाला के लिए गौ रक्षा बोर्ड इन दिनों जनमत जुटा रहा है। फाजिल्का आए बोर्ड के वाइस चेयरमैन देवी दयाल पराशर ने बताया कि गौवंश के भोजन के लिए सरकार से फंड की मांग की गई है। वैसे चारा गौशाला की जमीन पर भी पैदा किया जाएगा। उन्होंने बताया कि देश की सबसे बड़ी गौशाला राजस्थान में बीकानेर के निकट सिंहथल धौरा में है, जहां करीब पांच लाख गायें हैं। उस गौशाला का संचालन साधू संत करते हैं। लेकिन किसी प्रदेश सरकार द्वारा गठित बोर्ड द्वारा बनाई जाने वाली बड़ी गौशाला पंजाब के नाभा में बनाई जा रही गौशाला ही होगी। वर्तमान में पूरे पंजाब में तीन सौ छोटी बड़ी रजिस्टर्ड गौशालाएं हैं। उनमें करीब ढाई लाख गायें पल रही हैं। पराशर ने बताया हालांकि प्रदेश स्तर पर बनाई जा रही गौशाला में बेसहारा पशु लाने के लिए सरकार ने हर जिले के डीसी से रिपोर्ट मांगी है, लेकिन बोर्ड द्वारा करवाए सर्वे के अनुसार करीब 10 हजार गायें और बछड़ों आदि को मिलाकर करीब 20 हजार गौवंश बेसहारा घूम रहा है।
Sunday, January 23, 2011
Monday, December 27, 2010
Cow and village unite the whole nation
By Ashutosh
The mass awareness campaign started by spiritual leadership of the nation in the name of Vishwa Mangal Gou Gram Yatra by taking the cow as a symbol truly proved to be an effort to reawaken the soul of the nation.
Beginning from Kurukshetra on Vijayadashami Day (September 28, 2009 ) it traversed the length and breadth of the nation in 108 days and acquainted the countrymen with the importance and relevance of traditional Indian social and economic structure. The saints and social activists moving with the Yatra educated the people about cow protection and rural development in various public meetings.
The Yatra had basically turned into a mass movement in its initial days itself. The enthusiasm developed among the people by it had started agitating the people. The speeches of the saints exhorted the people especially the youth. On the other hand the upayatras undertaken in all the states awakened the people at the grass root level.
On the very first day itself, i.e. October 1, the people waited for hours at the places fixed to welcome the Yatra in bright sunlight. The Yatra normally moved late due to unprecedented reception accorded to it by the people at different places. People stopped the Yatra in middle way and did not allow it to move further till they welcomed the saints, performed goupuja and expressed their commitment for cow protection. People in villages were found happier as they felt that it was for the first time that somebody was fighting for their cause. People from all sections of the society including children, youth, old and women were participating with full vigour and furvour. The Yatra also cleaned the image of Indian youth who are normally depicted as anti-traditional Indian culture by a section of the media. The youth were seen highly energetic for cow and village protection.
The way the villagers extended welcome to the Yatra in whole of the country was a clear indication that they were ready to fight for their rights and also for cow protection. The Yatra not only mobilised the common man for cow protection but also established the fact that the forces committed to restore pride of the nation have not yet weakened. Women in Hisar (Haryana) distributed more than 10,000 food packets to the gobhaktas. An emotional wave was seen in Punjab too. It also received warm welcome while entering in Jammu on October 6, which is considered highly sensitive for security point of view.
It was a unique Yatra spreading the message of Bharatiyata. Taking the cow as a symbol of change, it moved with the objective of bringing a positive change in the system. It was an initiative which generated a debate all over the nation, for the first time after Independence whether the model of development we adopted during the last 63 years led us to prosperity and development or to destruction.
As the Yatra moved forward, upayatras continued to join it and very soon it took the form of a big movement. Crossing many mountains and valleys of Jammu & Kashmir and Himachal Pradesh the Yatra entered in Uttarakhand situated in the Shivalik range of the Himalayas . The enthusiasm of the people even at the small towns was very inspiring. There was same shankhdhvani, the same slogans for the protection of Cow, the Ganga and the Gita and the same inspiring speeches of the saints. But the crowed listening to the speeches of the saints and raising slogans was different but with same vigour, energy and faith.
Originating from the hills and joining many small rivers as the Ganga assumes a gigantic form while entering in the plain the Vishwa Mangal Gou Garam Yatra too took a gigantic form receiving energy from the upayatras that joined it at many places. This form of the Yatra began from Chandigarh and continued to become bigger and bigger.
The election battle in Haryana was at its peak. But at that time also the Vishwa Mangal Gou Gram Yatra attracted high turn out in the meetings. The Yatra was in Yamunanagar. The Ramlial Grounds at Paper Mill was packed beyond its capacity. There was a big line of the vehicles brought by the rural people participating in the welcome meeting. They included buses, jeeps, tractor-trolleys etc. People from adjoining villages of Yamunagar and Jagadhari like Nandgarh, Darpur, Rampur, Golani, Khajuri, Budiya, Thana Dhapar, Sathora, Mughalwani etc. had starting reaching the ground since noon and stayed there till Swami Akhileshwaranand Giri administered them the oath of cow protection at late hours in the evening. The people responded with clapping on the speech of Shankaracharya Shri Raghaveshwara Bharati Swamji. The ground continued to reverberate with the clapping and slogans. This response proved that the public is still with those who are really fighting or their cause.
People’s participation was increasing day-by-day. After crossing the river Yamuna the Yatra reached Saharanpur city of Western Uttar Pradesh where thousands of gobhaktas had assembled even early morning to welcome it. Even after the Yatra left Saharanpur the people continued to come in tractor-trolleys and in other vehicles.
Besides the local people there were many leading saints at the function held in Haridwar. Apart from the cow they also expressed concern over the deteriorating condition of the Ganga . Prior to it the Yatra received tremendous welcome at Dev Sanskrit University in Shantikunj. Many senior leaders of Gayatri Pariwar were present at this function. The meeting held at Roorkier at night was very impressive. The BT Gang Crossing was full to beyond its capacity. Those who did not get the place to sit were standing. Noted Muslim leader Chhote Miyan described the cow slaughter as anti-Islam at the function.
The scene in Muzaffarnagar was no less impressive than in Saharanpur . There was a large crowed of gobhaktas and the people were continued to come. The main attraction at this meeting was the presence of noted farmers’ leader Shri Mahendra Singh Tikait.
The Tyagi Hostel Ground of Meerut was packed, but there was huge crowed at the meeting in Garh Mukteshwar. The slogan of ‘Gomata ki Jai’ was reverberating from the venue to the banks of the Ganga . The pain of the farmers and the villagers was clearly visible during the speech of Shri Raghaveshwara Bharati Swamiji. It was a very emotional moment when the young saint Shri Atul Krisna Bhardwaj administered the crowed of more than 20,000 people the oath of cow protection.
Passing through Badanyun the Yatra reached Kasganj on October 13 where it received grand welcome. People were showering flowers from both sides when it passed through the main streets of the city. People extended special welcome at many places. The participation of the rural people was very much inspiring here.
It was marvelous and indescribable scene when the convoy of vehicles moving with the Yatra entered Lalganj town, near Benaras. Thousands of people were lined up both sides of the road to have darshan of the gourath and saints. Grand welcome was being accorded with the tune of the band. Welcome gates had been erected. Women were peeping into the small holes and also having a look of the Yatra from the roofs of houses. Some people are showering flowers. A group of enthusiastic youth climbed on the trees to have greater and the best look of the yatra.
It took over one and half hours to cover the distance of just three km in Lalganj. “It is for the first time when somebody is talking about us. We have received so many political assurances so far but it is for the first time that an effort has been made to raise the living standard and self-respect of the villagers,” said Ramanand of Azamgarh.
Ramkeval Yadav who belongs to a village near Lalganj said, “We have been doing what we were told to do. We started herding crossbreed cows when the government told us that we can get more milk if we improve the breed of the animals. Similarly we used urea and other chemical fertilizers when the government told us that by doing so we can get more production. It was the government which organised Farmers Meetings to ‘educate’ us how to use chemical fertilizers and fertilizers. It is the government too that taught us to use so-called high quality seeds and also having cash crops. Now you people are telling that all that was wrong.”
When asked whether he was benefited after following the suggestions of the government and also what the people of Gou Gram Yatra are telling is wrong, another farmer Ajudhya Prasad says, “The people in the Yatra are telling what our ancestors used to say at that time. But we did not listened to them and are not perishing today. This is fact that we got some benefit in the beginning but now our soil has become infertile. Now we get what and how much chemical fertilizers we use in the field.” Meanwhile, another farmer Ramarai interrupts, “What you are telling appears correct but we fail to understand why our own government cheated us?”
This innocent question raised by an illiterate farmer belonging to a backward village was no less than a Yaksha prashna that exhorted all of us. If a question has power it exhorts lakhs of minds and forces to find an answer.
Beginning from Gorakhpur and passing through Kushinagar on October 25 the Yatra entered Bihar from Motihari. The above question emerged before my eyes every time I saw the people attending different meetings. Though there were different people, different places and different geographical atmosphere. The language and words too were different. But the gist of all the questions was same everywhere and it was not difficult to feel it.
During the Yatra about four big meetings were organised everyday. Barring the 50 odd people moving with the Yatra permanently, both the speakers and audience were changed in every meeting. Some speakers talked about the welfare form of the cow while some called her highly revered as crores of Gods and Goddess reside in different parts of her body. Some speakers also questioned the intention of the government and its policies and cornered it for the declines surfacing in the society and the country everywhere. Not only the environmental degradation was raised but also the side effects of the chemical pesticides, change in the climate like global warming melting glaciers and natural disasters were too discussed in details. A concern was also expressed over the suicides by farmers.
Many questions surfaced but the Gou Gram Yatra was a positive step in totality. It did not lead the agitating society to revolt or violence but presented the centuries old tried and tested cultural, traditional and ancient wisdom in modern and scientific perspective before the common masses. It is encouraging the people to adopt different methods cow protection and rural development. That is why the problems of common men raising in their own languages and sharing the pain of their sufferings were touching the heart of the real Bharat.
Despite living on the coast of the sea in Western Ghat of Andhra Pradesh., the people there are still thirsty. The dry soil and unbearable scorching heat of the season force the people to properly save and store each and every drop of the water. The main task of the women in this region is to find out water resources and store water properly. If a pot of water falls it means another visit to the water resource. But the matter that was different.
The people of Davuru village received the news that the Vishwa Mangal Gou Gram Yatra would pass through their village. Since the street the gourath would pass through should not remain dirty, the women brought water pots from their houses and start washing it with water. It is their style and tradition of extending welcome. This scene was nothing but a wonder for the people of north India who were moving with the Yatra. The Gourath was worshipped at the door of every house. People showered flower petals, performed aarati, broken the coconut and started following the rath. The youth expressed their enthusiasm by bursting firecrackers. Not only the male but females of the village too come to see off the Gourath out of the village. They do not seem in a hurry despite the fact that they had to go to the water resources again to fetch water for preparing the meal at the night.
The local organisers of the Yatra announced that the Yatra would not go to Dharmavaram city as without skipping this city the Yatra cannot reach the next venue in time. But what a surprise! Hundreds of people thronged the bypass road to extend welcome and perform puja of the Gourath. They included children and over eighty-year-old women also. The enthusiasm of these people shows that faith and traditions still dominate over modernity.
There are many big religious places in southern parts of the country. The functions were held at almost all the places including Tirupati, Kanchi Kamakoti Peetham, Kanyakumari, Gauri Mayur region, Tanjavur, Mudrai, etc. In many temples the gourath was taken inside them to perform proper puja and abhishekam. The unity of various ways of worship, sections and social, religious organisations too was clearly visible.
After visiting various places of easten Uttar Pradesh, Bihar , Jharkhand, West Bengal and Orissa, the Vishwa Mangal Gou Gram Yatra entered Vijaynagar city of Andhra Pradesh on November 11. It was accorded a warm welcome there. The Yatra reached Visakhapattanam in the evening where it was received by a group of youth in the form of a huge vehicle rally. The local people played their traditional musical instruments to welcome it. After taking out the Yatra as a procession in the city for about an hour, a welcome meeting was organised on the RK Beach near the seacoast.
The Yatra entered Tamil Nadu on November 20, where it was accorded a touching welcome in Chennai. It traversed the state for seven days and then entered Kerala on November 7. As the Yatra reached the Nayatinkara village near Kerala border, it was accorded a traditional welcome. Here too a grand vehicle rally was taken out by the youth. The people were dancing on the tunes of Chenda Melan and Nad Swaram. As the goubhaktas were showering flower petals on the route of the Rath, a thick layer of flower petals was visible on the road. A group of women carrying umbrellas of different colours was moving in front of the gourath and accorded a traditional welcome. The streets turned saffron with saffron flags. Some youth also burst firecrackers to express their enthusiasm.
After completing the tour of Kerala the Yatra entered Karnataka on November 30 where it was welcomed with playing of traditional musical instruments. The Yatra reached Mysore in the evening where a public meeting was organised. The meeting was accorded a warm welcome in Bengaluru on December 1. The founder of the Art of Living Sri Sri Ravi Shankar Guruji, Swami Dayananda Saraswati of Arsh Vidyagurukulam, Gokarna Peethadhishwar Shri Raghaveshwara Bharati Swamiji and VHP president Shri Ashok Singhal were also present at the meeting.
The Yatra enterd Goa on December 7, where it was accorded a warm welcome at Mulem village near the border. Then passing through Fonda it reached Dichauli. A grand public meeting was organised at Chhatrapati Shivaji Maidan there. Starting from Dichauli, the Yatra entered Ratnagiri, the birthplace of Bal Gangadhar Tilak in Maharashtra on December 8. Here too, it was accorded a warm reception.
The Yatra entered Gujarat on December 17 where it was accorded a traditional welcome. Saffron flags were installed at the both sides of the roads. People in large number were showering flower petals on the gourath. The traditional folk dance of Dangs and the tunes of ‘Pawari’ and ‘Sarnai’, the traditional musical instruments, touched the heart of the goubhaktas. The youth took out a vehicle rally to welcome the Yatra. The women in large number were moving ahead of the Yatra carrying mangal kalashes on their heads. The scene turned highly moving when the youth invited Swami Akhileshwaranand Giri in a rath and took out the grand procession in the city. There was a cannon installed on a vehicle which was showering flower petals on the goubhaktas. The goubhaktas in Rajkot donated 492 units of blood equal to the weight of the Geer breed cow which was worshiped at the function.
The welcome accorded to the Yatra in Delhi was highly touching while the welcome accorded in Jaipur on December 29 was moving. The local administration had imposed curfew in some parts of Bhilwada on December 31 following communal tension. But when the administration granted three hours relaxation in the curfew the whole city turned to welcome the Yatra. A total of 21 upayatras were organised Banswara and Dungarpur districts which visited 4200 villages. There was not a single village in both the districts where the upayatras did not visit and signatures were not collected.
The functions organised in Indore , Bhopal , Ujjain , Jabalpur , Pann etc in Madhya Pradesh was presided over by Nandi Swami of Karantaka. The Yatra was welcomed by Chhattisgarh Chief Minister Dr Raman Singh when it reached Raipur . The welcome of the Yatra in Nagpur on January 16 and the concluding ceremony organised at Reshim Bagh Grounds were both highly impressive.
By and large the Yatra exhorted the whole nation in 108 days. It was accorded touching welcome wherever it visited. The Yatra not only exhorted the countrymen but also generated a hope in the disappointed hearts. Undoubtedly it proved to be the biggest ever constructive movement of the independent Bharat which untied the whole nation on the issue of cow and the village.
भारतीय क्रांति परम्परा की यात्रा – जयप्रकाश सिंह
भारत में व्यवस्था परिवर्तन की विशेष वैचारिक-सांस्कृतिक परम्परा रही है। यह ऐसी परम्परा है जिसमें व्यवस्था परिवर्तन का मतलब सत्ता परिवर्तन नहीं होता अपितु शाश्वत कहे जाने वाले जीवन-मूल्यों एवं जीवन-दर्शन को प्रतिष्ठित तथा नवीन परिस्थितियों में परिभाषित करने की कोशिश की जाती है। यह क्रांति परम्परा ‘तंत्र’ के बजाय ‘तत्व’ परिवर्तन पर जोर देती है। इसमें राजनीतिक आर्थिक संरचना को बदलने से अधिक जोर समाज की सामूहिक चेतना को परिवर्तित करने पर होता है। चेतना के स्तर पर होने वाली इस क्रांति का प्रभाव सूक्ष्म और दूरगामी होता है। राज्य के बजाय समाज और संस्कृति इस कांति प्रक्रिया के क्षेत्र होते हैं। इसलिए इसमें हिंसा के लिए ‘ स्पेस’ न के बराबर होता है।
इस परम्परा को ध्यान में रखते हुए भारतीय इतिहास पर नजर डालने पर स्पष्ट होता है कि भारत की भूमि क्रांति के लिए सबसे उर्वर रही है और यहां की आबोहवा व्यवस्था परिवर्तन के लिए किए जाने वाले संघर्षों की सबसे अधिक पोषक। भारत में शायद ही कोई ऐसा कोई कालखण्ड रहा हो जिसमें सांस्कृतिक स्तर पर पहल और प्रतिरोध का अभाव रहा हो। भारतीय संस्कृति पर अत्यंत प्रामाणिक ग्रंथ माने जाने वाले ‘संस्कृति के चार अध्याय’ में रामधारी सिंह दिनकर ने भारत में विद्यमान सांस्कृतिक प्रतिरोध की परम्परा का उल्लेख किया है।
भारत की क्रांति परम्परा से अंजान कुछ पश्चिमी और भारतीय विद्वान भारत को एक जड देश मानते हैं, एक ऐसा जिसके मूलभूत राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक ढांचे में वर्षों से कोई परिवर्तन नहीं हुआ। पश्चिमी नजरिए से भारत की व्याख्या करने वालों के लिए यह निष्कर्ष स्वाभाविक भी है क्योंकि पश्चिम में क्रांति का मतलब राजनीतिक सत्ता का परिवर्तन होता है और इस परिवर्तन के लिए बडे पैमाने पर होने वाली हिंसा को एक पूर्व शर्त माना जाता है। भारत में व्यवस्था परिवर्तन के लिए व्यापक पैमाने पर हिंसा कभी नहीं हुई। इसलिए उनको लगता है कि भारतीय समाज जड़ता से ग्रसित है।
आद्य शंकराचार्य ने तत्कालीन समय में हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए सांस्कृतिक एवं दार्शनिक धरातल पर ही प्रयास किए थे। रक्त की एक बूंद गिराए बिना उन्होंने भारत के सनातन सांस्कृतिक प्रवाह में नवजीवन का संचार किया। समाज की सामूहिक चेतना में विभिन्न मतांतरों के कारण पैदा हुए धुंध को उन्होंने अपने तर्कों एवं नवीन व्याख्याओं द्वारा दूर किया। भारतीयों में अपने सांस्कृतिक प्रवाह के प्रति लगाव पैदा कर उन्होंने प्रतिरोध की शक्ति खडी की।
भारतीय इतिहास के मध्यकाल में प्रारम्भ हुआ भक्ति आंदोलन भारत की सांस्कृतिक क्रांति की परम्परा का एक सशक्त उदाहरण है। समाज और संस्कृति पर पड रह राजनीतिक दबावों को सहने की शक्ति इस आंदोलन भारतीयों को प्रदान की। इस आंदोलन के आत्मविस्मृति के दोष को दूर कर स्वाभिमान की भावना पैदा की और भारतीय समाज को विजातीय तत्वों से लडने की प्रेरणा प्रदान की। 1857 की क्रांति की ज्वाला भडकने के कारण भी राजनीतिक से ज्यादा सांस्कृतिक थे। स्वतंत्रता संघर्ष के लिए गांधी ने जिस साधनों का अपनाया और संघर्ष की रुपरेखा तैयार की उसका शक्ति केन्द्र भी सांस्कृतिक ही था।
विजयदशमी से प्रारंभ होकर 108 दिनों तक चलने वाली विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा भारतीय सांस्कृतिक क्रांति की परम्परा में नवीनतम कडी है। गो को प्रतीक मानकर वर्तमान व्यवस्था और विकास मॉडल पर विमर्श करने तथा भारतीय विकास मॉडल को स्थापित करने का प्रयास है यह यात्रा। व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय जीवन में भारतीयता के संधान का एक प्रयास है।
भारतमाता को ग्रामवासिनी कहा जाता है। अर्थात भारत को पहचान देने वाली विशेषताओं एवं जीवनशक्ति प्रदान करने वाले कारकों का उद्भव गांव आधारित व्यवस्था से होता है। भारतीयता प्रदान करने वाली इस ग्रामीण संरचना का आधार गाय है। गाय ही वह केन्द्र बिन्दु है जिसके चारों तरफ भारतीयता का ताना -बाना बुना गया है। गाय का गोमय एवं गोमूत्र भूमि का पोषण करते हैं पंचगव्य मनुष्यों का पोषण करता है। रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों और जैविक खेती की बढती मांग ने गायों की महत्ता को एक बार फिर से रेखांकित किया है। भारतीय नस्ल की गायों में अल्प मात्रा में स्वर्णमाक्षिक भस्म पाए जाने और अन्य जानवरों से अधिक सुपाच्य होने की बात पुष्ट हो चुकी है। गाय से प्राप्त होने वाले पंचगव्य औषधीय गुणों से भरपूर है। पंचगव्यों के औषधीय गुणों के कारण ही गो-चिकित्सा एक वैकल्पिक चिकित्सा व्यवस्था के रुप में उभर रही है। गोमुत्र में कैंसररोधी तत्वों के पाए जाने की पुष्टि हो चुकी है। आयुर्वेद के अनुसार पंचगव्य का सेवन शरीर में वात, कफ और पित्त को साम्यावस्था में लाकर सभी रोगों का शमन करता है।
पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने में भी गाय की महत्वपूर्ण भूमिका है। गोबर गैस प्लांटों का उपयोग खाना बनाने के लिए ईंधन के रुप में किया जा सकता है। इससे कार्बन उत्सर्जन में कमी के साथ रासायनिक खादों के विकल्प के रुप में हमे जैविक खाद भी मिलेगी। गोबर से बिजली प्राप्त करके हम स्वावलम्बी उर्जा गृह का निर्माण कर सकते हैं। इससे भारत को अपनी उर्जा जरुरतों को पूरा करने के लिए किसी के सामने रिरियाना नहीं पडेगा। न ही अपनी सम्प्रभुता को गिरवी रखकर अमेरिका के साथ नाभिकीय समझौता करने की नौबत आएगी। साथ ही भारत की अकूत सम्पदा बाहर जाने से बच जाएगी।
भारत और गाय का सम्बंध आार्थिक, चिकित्सकीय एवं पर्यावरणीय से अधिक सांस्कृतिक है। पक्ष से अधिक भारत जिन मूल्यों, आस्थाओं, दर्शनों का उपासक है गाय का उनसे सम्बंध है। गाय की सांस्कृतिक महत्ता को स्वीकार करते हुए ही इसमें सभी तैंतीस करोड देवताओं का वास बताया गया है। एक भारतीय जीवन से लेकर मरण तक गोमाता से जुडा होता है। पैदा होने पर गाय के गोबर से ‘लीपकर’ घर में स्वागत किया जाता है और अंत समय उसका परिवार गोदान कर उसे ‘वैतरणी ‘पार कराता है। किसान नयी फसल से प्राप्त अनाज को गाय के गोबर से ‘गोंठकर’ ही तौलना प्रारम्भ करता है। घर में सभी धार्मिक कर्मकाण्डों से पहले भूमि का गोमय से शुध्दीकरण आवश्यक है। और घर में बनने वाला भोजन का पहला हिस्सा गोग्रास के रुप में गोमाता को ही समर्पित किया जाता है। हम कह सकते है कि गाय सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रुप से भारतीय जनजीवन में रची-बसी है। गोसंवर्ध्दन और गोसंरक्षण करके हम भारत और भारतीयता को नई शक्ति प्रदान कर सकते हैं।
भारतीय धार्मिक साहित्य पर दृष्टिपात करने से स्पष्ट होता है गाय ने सदैव ही उदात्त मूल्यों के लिए संघर्ष करने के लिए भारतीयों प्रेरित किया है। राक्षसी मूल्यों के नाश का कारण गाय बनती रही है। उदात्त मूल्यों को अपने में धारण करने के कारण ही किसी भी कीमत पर गोवंश की रक्षा करने की बात कही गयी है। राजा दिलीप गो को बचाने के लिए स्वयं को सिंह के सामने अर्पित करते है। भगवान श्री राम तुलसीदास कृत रामचरित मानस में कहते हैं कि विप्र गउ सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार। भगवान श्रीकृष्ण का तो एक नाम ही गोपाल है। गाय के कारण ही नचिकेता उदात्त आदर्शो का सृजन करते है।
गांधी जी ने सौ वर्ष पूर्व भारतीय आत्मा के संधान के लिए एक अनुपम पुस्तक हिंद स्वराज लिखी थी। हिन्द स्वराज में पश्चिमी विकास मॉडल पर गहरे व्यंग्य किए गए। इस किताब के शताब्दी वर्ष में जबकि मीडिया के कंधे पर सवार वैश्वीकरण के कारण विकास की विद्रूपताएं अधिक स्पष्ट होती नजर आ रही है विश्व मंगल गो ग्राम यात्र गांधी सपनों को जमीन पर उतारने के व्यवहारिक मॉडल के साथ प्रारम्भ हुई है। नई व्यवस्था को रचना के लिए आवश्यक पहल, प्रयोग और प्रतीक तथा संभावनाएं इस यात्रा में शामिल है। हिंद स्वराज के शताब्दी वर्ष में प्रारम्भ यह यात्रा गांधी को सच्ची श्रध्दांजलि के साथ भारत के विश्व कल्याणकारी सांस्कृतिक प्रवाह को बनाए रखने और निरंतर क्षीण होती सांस्कृतिक प्रतिरोधक क्षमता को बढाने की सकारात्मक पहल है।
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