Friday, March 25, 2011

बीमार गाय-भैंसों को चारा तो दूर पानी भी नहीं


हिसार दूध के रूप में पशु के खून का कतरा-कतरा निचोड़ कर मालामाल होने वाला राजकीय पशुधन फार्म दो आज उन्हीं पशुओं को तिल-तिल मारने पर जुटा है। इन पशुओं का कसूर बस इतना है कि यह वक्त की मार से नकारा हो चुके हैं या बीमारी के कारण फार्म को कमाई नहीं दे सकते। चलते-फिरते कंकाल बन चुके यह पशु मिनट दर मिनट मौत के करीब जा रहे हैं और कुछ दिनों बाद यह पशु भी फार्म के एक कोने में पड़े हड्डियों के ढेर में शामिल हो जाएंगे। राजकीय पशुधन फार्म सेक्टर-दो के गौ सदन का निर्माण ही केवल इसलिए किया गया था यहां बीमार व बांझ पशुओं रखा जा सके। गौ सदन के उद्देश्य के विपरीत इसे पशुओं के आरामगाह की जगह बूचड़खाने में तबदील कर दिया गया है। रिकार्ड के अनुसार यहां पर लगभग एक माह पहले बु्रसोलोसिस बीमारी से पीडि़त 60 भैंसों व कटड़ों को लाया गया था लेकिन इनकी संख्या लगभग एक सौ के करीब है, दूसरी बीमारियों से ग्रस्त लगभग 60 गाय व सांड पहले से ही यहां थे। नियमानुसार बु्रसोलोसिस बीमारी से पीडि़त पशु के साथ दूसरे किसी जानवर को रखा नहीं जा सकता, लेकिन गाय व सांडों को इनके बीच रखा गया है। इससे यह बीमारी गाय व सांडों में भी फैलने का खतरा बढ़ गया है।
नहीं मिल रहा चारा-पानी : फार्म के गौ सदन में बीमार और नाकारा घोषित पशु दयनीय स्थिति में थे। पशु चलते-फिरते कंकाल में बदल गए हैं। चारागाह में पड़े गोबर और सूखी लकडिय़ां खुद-ब-खुद पशुओं को मिलने वाले चारे की कहानी बयां कर रहे थे। सदन की चार दीवारी के अंदर कहीं भी पानी का इंतजाम नहीं था। इस गौ सदन में कराह रहे इन बेजुबानों की आवाज सुनने वाला वहां कोई नहीं था।
ब्रुसोलोसिस का कोई इलाज नहीं : डॉ. पूर्णचंद लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विवि के पशु चिकित्सक एवं बु्रसोलोसिस बीमारी विशेषज्ञ डॉ. पूर्णचंद का कहना है कि यह पशुओं की ऐसी बीमारी है जिसका कोई उपचार नहीं है। बीमारी से पीडि़त पशु का दूध किसी काम का नहीं होता और उससे पैदा होने वाले बच्चे को भी यह बीमारी लग जाती है। इसके अलावा अगर किसी स्वस्थ जानवर को इस बीमारी से पीडि़त पशु के साथ रखा जाता है तो उसे भी यह बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है।
दबाने की बजाए खुले में फेंकी जाती है हड्डियां : नियमानुसार बु्रसोलोसिस से पीडि़त पशुओं को मरने के बाद छह फुट गहरे गढ्डे में दबाया जाना चाहिए। दबाने से पहले से शव पर फिनाइल, चूना व नमक डाला जाता है। परंतु सदन में मरने वाले इन पशुओं को कुछ ही दूरी पर फेंक दिया जाता है जहां इनकी खाल तो उतार ली जाती है लेकिन हड्डियों का ढेर वहीं छोड़ दिया जाता है। इससे सेक्टर में आने वाले कुत्ते मृत पशुओं का मांस खाकर बु्रसोलोसिस बीमारी को पड़ोस के गांवों तक ले जाते हैं।
नेचुरल डेथ के लिए छोड़े हैं पशु : पशुधन फार्म के अधीक्षक डॉ. ईश्वर सिंह जाले का कहना है कि इन पशुओं में लगी बीमारियों का कोई इलाज नहीं है। इसलिए नेचुरल डेथ के लिए इन्हें गौ सदन में रखा गया है। नियमानुसार इन पशुओं को चारा दिया जाता है।